BA Semester-5 Paper-2 Ancient Indian History - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2794
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 10

भारत के प्रमुख अभिलेख

(Major Inscriptions of India)

प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।

अथवा
पुरातत्व में अभिलेख के महत्व का विवेचन कीजिए।
अथवा
अभिलेख अध्ययन एक विज्ञान हैं। प्रमाणित कीजिए।
अथवा
प्राचीन भारत के इतिहास को जानने के लिये अभिलेख कहाँ तक सहायक होते हैं?
अथवा
प्राचीन भारतीय इतिहास के क्षेत्र के रूप में अभिलेखों के महत्व की विवेचना कीजिए।
अथवा
इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों के महत्व का विवरण दीजिए।

उत्तर-

भारतीय इतिहास निर्माण की दिशा में पुरातत्व सामग्रियों में अभिलेखों का महत्वपूर्ण स्थान है। ये हमारे लिए दो प्रकार से सहायक हैं- प्रतिपादक के रूप में तथा तथ्यों के रूप में। प्रतिपादक राज्य सम्बन्धित विषय के एक मात्र स्रोत हैं, जैसे- अशोक के लेख समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख, खारवेल का हाथी गुम्फा अभिलेख आदि। यदि अभिलेख न होते तो हम इन शासकों की उपलब्धियों की जानकारी से वंचित रह जाते क्योंकि अन्यत्र इनकी चर्चा नहीं है। विभिन्न तथ्यों की जानकारी हमें साहित्य से भी मिल जाती है उदाहरणार्थ पुष्पमित्र द्वारा सम्पादित अश्वमेध यज्ञ, समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी रामगुप्त, शशांक द्वारा राज्यवर्द्धन की हत्या, हर्ष पुलकेशिन युद्ध आदि।

अभिलेखों से निम्नलिखित ऐतिहासिक तथ्यों की जानकरी प्राप्त होती है-

1. वंश-वृक्ष वर्णन - अभिलेखों से ऐतिहासिक वंश-दृ शासक के का ज्ञान प्राप्त होता है। जिस राज्यकाल में अभिलेख उत्कीर्ण होता था, उसके पोश-वृक्ष का उल्लेख अभिलेख में कर दिया जाता था। यद्यपि ईसा पूर्व शताब्दियों में यह ब नहीं थी, किन्तु 150 ईसा पूर्व में रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में उसकी वंशावली का स्पष्ट उल्लेख हैं। "स्वामिचप्टनप्य पौत्रस्य राज्ञः क्षत्रपस्य सुगृहीत्नाम्नः स्वामिजयदाम्नः पुत्रस्य रमाक्षत्रपस्यरुद्रदाम्नः।" पश्चिमी शक क्षत्रपों के मुंडा लेख में भी पिता पुत्र दोनों का उल्लेख है।

गुप्त कालीन अभिलेखों में वंश-वृक्ष वर्णन की परम्परा चरम सीमा पर थी। समद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति तथा स्कन्दगुप्त के भीतरी स्तम्भ लेख में सम्पूर्ण वंश-वृक्ष का वर्णन इस प्रकार है "महाराज श्रीगुप्तपौत्रस्य महाराज श्री घटोत्कच पौत्रस्य महाराजाधिराज श्री चन्द्रगुप्तपुत्रस्य महादेव्यां- कुमार देव्यां उत्पन्नस्य महाराजाधिराज श्री समुद्रगुप्तपुत्रस्य। तत्परिगृहीतो महादेव्यां ध्रुवदेव्या मुत्पन्नस्य परमभागवतो महाराजाधिराज श्री कुमार गुप्तस्य प्रथितविपुलधामा नामतः स्कन्दगुप्तः।"

गुप्तकालीन वाकाटक नरेश विन्ध्यशक्ति के ताम्रपत्र में उसके पितामह प्रवरसेन तथा पिता सर्वसेन का उल्लेख है "प्रवरसेनपौत्रस्य श्री सर्वसेन पुत्रस्यधर्म महाराजस्य नाटकानां श्री विन्ध्यशक्तिः।"

इसी प्रकार प्रतिहार नरेश महेन्द्रपाल की राजमुद्रा से उस वंश के राजा तथा रानी का क्रमबद्ध नाम मिलता है। हर्षवर्द्धन के बाँसखेड़ा ताम्रपत्र में नरवर्द्धन से हर्षवर्द्धन तक शासकों तथा रानियों के नाम उल्लिखित हैं। ऐहोल अभिलेख में चालुक्य नरेशों की वंशावली निर्दिष्ट है। पाल वंशीय शासकों का वंश-वृक्ष उसके खालिमपुर ताम्रपत्र में मिलता है। इस प्रकार अभिलेखों से अनेक भारतीय शासकों के वंश-वृक्ष का ज्ञान सरलता से प्राप्त होता है।

2. शासन व्यवस्था का ज्ञान - अभिलेखों के अध्ययन से प्राचीन शासन पद्धति की भी रूपरेखा का परिज्ञान होता है। प्रशस्ति उत्कीर्ण करते समय अथवा राजाज्ञा प्रसारित करते समय राज्य के कुछ पदाधिकारियों का भी उल्लेख अनिवार्य रूप से किया जाता था। मौर्यकालीन शासन व्यवस्था का ज्ञान अशोक के अभिलेखों से होता है। मौर्यकालीन शासन व्यवस्था का ज्ञान अशोक के अभिलेखों से होता है। अशोक के पंचम तथा तृतीय शिलालेख में धर्ममहापात्र, राजुक, प्रादेशिक तथा युक्त नामक पदाधिकारियों को प्रजाहित की दृष्टि से राज्य में भ्रमण करने की आज्ञा थी। इससे परिलक्षित होता है कि राजनीति के ग्रन्थों में वर्णित पदाधिकारियों की नियुक्ति शासकों द्वारा होती थी। अशोक के अभिलेखों से यह ज्ञात होता है कि उनका साम्राज्य प्रान्तों में बँटा था, जहाँ पर राजकुमार भी प्रान्तपति के रूप में शासन करते थे। गुप्त अभिलेखों से गुप्त शासन प्रणाली का परिज्ञान होता है। प्रयाग स्तम्भ लेख से यह ज्ञात होता है कि प्रशस्ति का लेखक हरिवेषण महादण्ड नायक, सन्धिविग्रहिक तथा कुमारामात्य पद को भी सुशोभित कर चुका था। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के उदयगिरि लेख में सनकानिक महाराज सामन्त तथा वीरसेन सेनापति का उल्लेख है। गुप्तलेखों से ज्ञात होता है कि साम्राज्य कई प्रान्तों में विभक्त होता था और उन प्रान्तों पर शासन करने वाले राज्यपाल, राष्ट्रीय भोगिक, भोगपति तथा गोप्ता जैसे शब्दों से सम्बन्धित होते थे। इसी प्रकार स्कन्दगुप्त के जूनागढ़ अभिलेख में सुराष्ट्र के प्रान्तपति तथा नगर रक्षक के रूप में पर्णदत्त तथा उसके पुत्र चक्रपालित की नियुक्ति का उल्लेख है। इसके साथ ही चोलों के ग्राम शासन तथा साम्राज्य संचालन में नारियों के योगदान का भी पता चलता है।

3. सामाजिक जीवन की झलक - प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन का भी ज्ञान प्राप्त होता है। अशोक के तृतीय, चतुर्थ तथा आठवें शिलालेख में तथा दक्षिण भारत के नरेशों के नासिक गुहालेखों में ब्राह्मणों का दानग्राही श्रेष्ठ ब्राह्मण के रूप में उल्लेख है। गुप्तयुग के लेखों में तीन वर्णों का उल्लेख है। पूर्व मध्ययुग के अभिलेखों में शासक का कर्तव्य समाज की स्थिरता के लिए वर्णाश्रम की रक्षा करना हो गया।

अभिलेखों के परिशीलन से भारतीय जन-जीवन के उज्जवल चरित्र का दर्शन होता है। अशोक द्वारा समाज हित के कार्यों और प्रदत्त सुख-सुविधाओं का विवरण प्राप्त होता है। उसने मनुष्यों तथा पशुओं की सुविधा के लिए दो प्रकार की चिकित्सा व्यवस्था की थी औषधियाँ जहाँ-जहाँ नहीं थी वहाँ पर बाहर से औषधियों के पौधे मंगवाये और रोपित कराये। जल की व्यवस्था के लिए मार्गों पर कुएँ खुदवाए तथा छायादार वृक्ष लगवाये।

सर्वत्र देवानं पियदसिनों राञो द्वे चिकी छकता मनुसचिकीछा च पसुचिकीछा च। ओसुडानि च यानि मनुसोपगानि च पसोपगानि च यत्र यत्र नास्ति सर्वत्रा हारापितानि च पंथेस खानापितु बुध च रोपापिता।

इसके साथ ही अभिलेखों से सामाजिक संस्कार बहुपत्नी व्रत, तथा सती प्रथा का भी अंत मिलता है। संगीत की प्रधानता के कारण गायिका तथा गणिका का भी उल्लेख मिलता है। मनोरंजन के साधन के रूप में मृगया, संगीत ध्रुतक्रीड़ा तथा शतरंज के साथ-साथ राजपरिवार तथा उच्च परिवार की रमणियों द्वारा पक्षी विनोद का भी उल्लेख है।

4. आर्थिक जीवन का वर्णन - अभिलेखों के अन्तर्गत सामाजिक स्थिति के साथ साथ आर्थिक जन-जीवन का भी उल्लेख मिलता है। अशोक ने अपनी धार्मिक नीति से भारतीय आर्थिक स्थिति को पतनोन्मुख कर दिया था जबकि उसके पश्चात् शुंग एवं सप्तवाहन राजाओं ने आर्थिक नीति को सुदृढ़ किया। गुप्तकाल में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था समुन्नत थी। जैसाकि स्कन्दगुप्त के जूनागढ़ प्रशस्ति में कहा गया है-

तस्मिन्नृपे शासति नैव कश्चिद्
धर्मादिपेतो मनुजः प्रजासु
आर्तो दरिद्रोव्यसनी कदयों
दण्डय्यो न वा यो भृरापीडितः स्यात् ॥

गुप्तकालीन शासन में कोई दुःखी दरिद्र एवं पीड़ित नहीं था। कृषि व्यवस्था पर शासकों का ध्यान रहता था और कृषकों की सुविधा के लिए सिंचाई की व्यवस्था की गयी थी, जिसकी जूनागढ़ प्रशस्ति से पुष्टि हो जाती है, जिसका प्रमुख प्रमाण सुदर्शन का जीर्णोद्धार था।

5. राजकर व्यवस्था का ज्ञान - अभिलेखों से राजकर व्यवस्था का भी परिज्ञान होता है। अशोक के रूम्मिनदेई अभिलेख से ज्ञात होता है कि राजकीय कर को छठे भाग की जगह घटाकर आठवां भाग कर दिया था (उबलिकीकटे से अठभागिये च )। ई. सन् की दूसरी शताब्दी के जूनागढ़ लेख से ज्ञात होता है कि रुद्रदामन भूमिकर तथा विष्टि अर्थात् बेगार से प्रजा का उत्पीड़न नहीं करता था ( अपीडयित्वा करदिष्टं प्रणय क्रियाभिः) गौतमी पुत्र शातकर्णि के नासिक अभिलेख में सम्पूर्ण क्षेत्र को 'कर' मुक्त करने की बात कही गयी है। गुप्तकालीन अभिलेखों में भी 'कर' शब्द का उल्लेख है। प्रयाग प्रशस्ति के विजय प्रसंग में कहा गया है कि समुद्रगुप्त ने उत्तरी भारत में सामन्तों को पराजित कर तथा दक्षिण भारत के शासकों से कर लेकर उन्हें मुक्त कर दिया "सर्वकरदानाज्ञाकरण प्रणामागमन पारितोषित प्रचण्ड शासनस्या। पाल वंशीय खालिमपुर अभिलेख से ज्ञात होता है कि कर को वसूल करने वाला अधिकारी 'षष्ठाधिकृत' कहा गया है। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि दसवीं सदी तक उपज का छठा भाग ही कर लिया जाता था। ताम्रपत्रों में दानभूमि को सभी प्रकार के करों से मुक्त माना गया है। हर्षवर्द्धन के समय में भी विभिन्न प्रकार के करों का उल्लेख मिलता है।

6. व्यापार सम्बन्धी ज्ञान - अभिलेखों से व्यापारिक ज्ञान की भी जानकारी प्राप्त होती है। व्यापार सम्बन्धी समस्त कार्यों का संचालन एक संस्था द्वारा होता था, जिसे अभिलेखों में श्रेणी कहा गया है। यह संस्था प्रजातन्त्र शैली पर कार्य करती थी और देश की बहुत कुछ आर्थिक नीति श्रेणी के हाथों में ही थी। सातवाहन तथा अन्य शासकों के अभिलेखों में संगठित शिल्प श्रेणी का उल्लेख है। गुप्तकाल में भी औद्योगिक उन्नति का श्रेय तत्कालीन श्रेणियों तथा निगमों को था जिसका सर्वोत्तम उदाहरण कुमारगुप्त प्रथम के मन्दसोर अभिलेख में मिलता है। नासिक तथा मथुरा लेख से श्रेणी तथा निगम के बैंक कार्य का पता चलता है। उन बैंकों में जनता अपनी धनराशि विश्वासपूर्वक सुरक्षित रखती थी।

7. धार्मिक सहिष्णुता का ज्ञान - अभिलेखों से धार्मिक सहिष्णुता की भी जानकारी प्राप्त होती है। मौर्य वंशीय शासक अशोक से लेकर बारहवीं सदी के बंगाल नरेश तक धार्मिक सहिष्णुता की भावना से ओत-प्रोत थे। विभिन्न शासकीय अभिलेखों के अनुशीलन से ज्ञात होता है कि धर्म के मामले में यहाँ के शासक सहिष्णु थे। अशोक ने बारहवें शिलालेख में दूसरे धर्म की निन्दा का निषेध किया है। सातवाहन शासकों के लेखों में एक ओर वैदिक यज्ञों का उल्लेख है, तो दूसरी ओर बौद्ध संघ को गुहादान की भी चर्चा की है। सप्तवाहनों के उत्तराधिकारी इक्ष्वाकु नरेश ने वैदिक यज्ञकर्ता होकर भी बौद्ध कन्या से विवाह किया था। गुप्त नरेशों का भी यही हाल था। वे परम वैष्णव धर्मानुयायी होकर भी शैव तथा जैन महानुयायी अधिकारियों की नियुक्ति करने में नहीं हिचकते थे। पाल वंशीय शासक परम सौगात होकर भी ब्राह्मण देवताओं के लिए दान देते थे। नारायण पाल ने सैकड़ों शिव मंदिर का निर्माण कर पाशुपत मतानुयायी आचार्य को मन्दिर का पदाधिकारी बनाया था। खजुराहो का विष्णु, शिव तथा जैन मन्दिर धार्मिक सहिष्णुता के जीते जागते प्रतीक हैं।

8. साहित्यिक चर्चा - अभिलेखों से साहित्यिक सन्दर्भों की भी जानकारी मिलती है। उत्कीर्ण लेखों से ज्ञात होता है कि प्रशस्तिकार चरम कोटि का विद्वान और साहित्यशास्त्र की परम्परा से पूर्णतः अवगत होता था, जिसकी प्रशस्ति में साहित्य सन्दर्भ की मनोरम झाँकी दृष्टिगत होती है। रुद्रदामन के जूनागढ़ प्रशस्ति का लेखक गद्य तथा पद्य दोनों में पारंगत था जिसकी क्षमता दण्डी के काव्यादर्श से की जा सकती है। लेख में राजा के लिए 'स्फुट लघु-मधुर-चित्रकान्त' शब्द सभ्योदारालंकृत गद्य-पद्य विशेषण प्रयुक्त है जो काव्यादर्श में वर्णित 'श्लेषः प्रसादः समता माधुर्य सुकुमारता आदि से समता रखता है। परिशीलन से ज्ञात होता है कि लेखक काव्य शैली में लिखने में सिद्धहस्त था।,

गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति गद्य-पद्य मिश्रित भाषा में लिखी गयी है, जो चम्पू काव्य का सुन्दर उदाहरण है। इस अभिलेख की एक विचित्र विशेषता यह है कि इसके रचनाकार हरिषेण जैसे विद्वान प्रशस्तिकार का नाम अन्यत्र नहीं मिलता। आश्चर्य तो यह हैं कि हरिषेण जेसा सफल साहित्यिक मर्मज्ञ भी सान्धिविग्रहिक, कुमारामात्य तथा महादण्डनायक जैसे महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित करता था। गुप्तकालीन जिन कवियों की कीर्ति केवल अभिलेखों में सुरक्षित है, उनमें सबसे योग्य विद्वान 'वत्सभट्टि हैं। उसके द्वारा रचित मन्दसोर अभिलेख साहित्यिक सौन्दर्य की दृष्टि से बेजोड़ है।

9. तिथिगत ज्ञान में सहायक - भारत के तिथिक्रम ज्ञान में अभिलेखों का महत्वपूर्ण योगदान है। उनमें तिथियों का उल्लेख दो प्रकार से मिलता है पहला राज्य वर्ष उल्लेख तथा दूसरा किसी सम्वत् से सम्बद्ध। अशोक के धर्मलेखों में अभिषेक के आठवें वर्ष, तेरहवें वर्ष, छब्बीसवें वर्ष तथा सत्ताइसवें वर्ष का उल्लेख है। इसी प्रकार सातवाहन अभिलेखों तथा खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख में राज्य वर्षों का उल्लेख है। इन तिथियों का किसी सम्वत् विशेष से सम्बन्ध नहीं है।

प्राचीन भारत में दूसरे प्रकार के अभिलेखों में शासकों की तिथि किसी न किसी सम्वत् से अवश्य सम्बद्ध है। अभिलेखों के अध्ययन से प्रमुख रूप में विक्रम सम्वत् शक सम्वत्, गुप्त सम्वत् और हर्ष सम्वत् का पता चलता है। इनमें विक्रम, गुप्त तथा हर्ष सम्वत् भारतीय राजाओं द्वारा प्रचलित किया गया था। ईस्वी सन् के आरम्भ में शक सम्वत् का प्रचलन हुआ, जिसका सम्बन्ध कुषाण नरेशों के अभिलेखों से स्थापित किया गया।

10. राजाओं के व्यक्तित्व और चरित्र की जानकारी - अभिलेखों से प्राचीन राजाओं के व्यक्तित्व एवं चरित्र का वर्णन उपलब्ध होता है। इन अभिलेखों में कलिंग नरेश खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख, समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति, स्कन्दगुप्त का जूनागढ़ अभिलेख, यशोवर्मन का मन्दसोर अभिलेख, मेहरौली का राजा चन्द्र का अभिलेख, ईशानवर्मा का हरहा अभिलेख प्रमुख हैं। इन अभिलेखों से सम्बन्धित शासकों के वंशानुक्रम, नाम, उपाधियाँ, जीवनवृत्त प्रमुख घटनाओं, विजय यात्राओं व्यक्तिगत रुचियों तथा अन्यान्य गुणों का विवरण प्राप्त होता है।

अन्ततः हम कह सकते हैं कि अभिलेखों को पढ़ना एक विज्ञान है, क्योंकि अभिलेखों में प्रयुक्त भाषा और लिपि को कोई जानकार विद्वान ही पढ़ सकता है, जिसे लिपिशास्त्र और भाषा विज्ञान का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त हो। अभिलेखों से प्राप्त जानकारियाँ यथार्थ होती हैं। अतः अभिलेखों का भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने में अत्यधिक योगदान है। अशोक के लेखों की प्रशंसा करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार डा. राधाकुमुद मुकर्जी का मत है कि - "वे अद्वितीय संग्रह हैं, जो उसके आदर्शों और आन्तरिक विचारों के सम्बन्ध में अन्तदृष्टि प्रदान करते हैं और शताब्दियों तक उस महान सम्राट के यथार्थ शब्द जनता तक पहुँचाते हैं।"

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पुरातत्व क्या है? इसकी विषय-वस्तु का निरूपण कीजिए।
  2. प्रश्न- पुरातत्व का मानविकी तथा अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के स्वरूप या प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  4. प्रश्न- 'पुरातत्व के अभाव में इतिहास अपंग है। इस कथन को समझाइए।
  5. प्रश्न- इतिहास का पुरातत्व शस्त्र के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- भारत में पुरातत्व पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  7. प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।
  8. प्रश्न- भारत के पुरातत्व के ह्रास होने के क्या कारण हैं?
  9. प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में पुरातत्व का महत्व बताइए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  12. प्रश्न- स्तम्भ लेख के विषय में आप क्या जानते हैं?
  13. प्रश्न- स्मारकों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्रात होती है?
  14. प्रश्न- पुरातत्व के उद्देश्यों से अवगत कराइये।
  15. प्रश्न- पुरातत्व के विकास के विषय में बताइये।
  16. प्रश्न- पुरातात्विक विज्ञान के विषय में बताइये।
  17. प्रश्न- ऑगस्टस पिट, विलियम फ्लिंडर्स पेट्री व सर मोर्टिमर व्हीलर के विषय में बताइये।
  18. प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- पुरातत्व में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज उत्खननों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  20. प्रश्न- डेटिंग मुख्य रूप से उत्खनन के बाद की जाती है, क्यों। कारणों का उल्लेख कीजिए।
  21. प्रश्न- डेटिंग (Dating) क्या है? विस्तृत रूप से बताइये।
  22. प्रश्न- कार्बन-14 की सीमाओं को बताइये।
  23. प्रश्न- उत्खनन व विश्लेषण (पुरातत्व के अंग) के विषय में बताइये।
  24. प्रश्न- रिमोट सेंसिंग, Lidar लेजर अल्टीमीटर के विषय में बताइये।
  25. प्रश्न- लम्बवत् और क्षैतिज उत्खनन में पारस्परिक सम्बन्धों को निरूपित कीजिए।
  26. प्रश्न- क्षैतिज उत्खनन के लाभों एवं हानियों पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विकास का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
  31. प्रश्न- मध्यपाषाण काल की संस्कृति का महत्व पूर्ववर्ती संस्कृतियों से अधिक है? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  32. प्रश्न- भारत में नवपाषाण कालीन संस्कृति के विस्तार का वर्णन कीजिये।
  33. प्रश्न- भारतीय पाषाणिक संस्कृति को कितने कालों में विभाजित किया गया है?
  34. प्रश्न- पुरापाषाण काल पर एक लघु लेख लिखिए।
  35. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन मृद्भाण्डों पर टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  37. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन शवाशेष पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
  39. प्रश्न- मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।।
  40. प्रश्न- मध्यपाषाणकालीन संस्कृति का विस्तार या प्रसार क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र के मध्यपाषाणिक उपकरणों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- गंगा घाटी की मध्यपाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
  44. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- दक्षिण भारत की नवपाषाण कालीन संस्कृति के विषय में बताइए।
  46. प्रश्न- मध्य गंगा घाटी की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
  48. प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- आहार संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- जोर्वे संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  54. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के औजार क्या थे?
  55. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  56. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  62. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  63. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?
  67. प्रश्न- लोहे की उत्पत्ति (भारत में) के विषय में विभिन्न चर्चाओं से अवगत कराइये।
  68. प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
  69. प्रश्न- महापाषाण संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- लौह युग की भारत में प्राचीनता से अवगत कराइये।
  71. प्रश्न- बलूचिस्तान में लौह की उत्पत्ति से सम्बन्धित मतों से अवगत कराइये?
  72. प्रश्न- भारत में लौह-प्रयोक्ता संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन मृद्भाण्ड परम्परा से आप क्या समझते हैं? गैरिक मृद्भाण्ड (OCP) संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  74. प्रश्न- चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (PGW) के विषय में विस्तार से समझाइए।
  75. प्रश्न- उत्तरी काले चमकदार मृद्भाण्ड (NBPW) के विषय में संक्षेप में बताइए।
  76. प्रश्न- एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम बताइए।
  77. प्रश्न- मालवा की मृद्भाण्ड परम्परा के विषय में बताइए।
  78. प्रश्न- पी. जी. डब्ल्यू. मृद्भाण्ड के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  79. प्रश्न- प्राचीन भारत में प्रयुक्त लिपियों के प्रकार तथा नाम बताइए।
  80. प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।
  81. प्रश्न- प्राचीन भारत की प्रमुख खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपियों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- अक्षरों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- अशोक के अभिलेख की लिपि बताइए।
  84. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  85. प्रश्न- अभिलेख किसे कहते हैं? और प्रालेख से किस प्रकार भिन्न हैं?
  86. प्रश्न- प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है?
  87. प्रश्न- अशोक के स्तम्भ लेखों के विषय में बताइये।
  88. प्रश्न- अशोक के रूमेन्देई स्तम्भ लेख का सार बताइए।
  89. प्रश्न- अभिलेख के प्रकार बताइए।
  90. प्रश्न- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के विषय में बताइए।
  91. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
  92. प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।
  93. प्रश्न- भारत में मुद्रा की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  94. प्रश्न- प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की साँचा विधि का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- मुद्रा निर्माण की ठप्पा विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- मौर्यकालीन सिक्कों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिए।
  98. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्के) से आप क्या समझते हैं?
  99. प्रश्न- आहत सिक्कों के प्रकार बताइये।
  100. प्रश्न- पंचमार्क सिक्कों का महत्व बताइए।
  101. प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- भारतीय यूनानी सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  103. प्रश्न- कुषाण कालीन सिक्कों के उद्भव एवं प्राचीनता को संक्षेप में बताइए।
  104. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन ताम्र सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
  106. प्रश्न- उत्तर गुप्तकालीन मुद्रा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  107. प्रश्न- समुद्रगुप्त के स्वर्ण सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  108. प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
  109. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
  110. प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
  113. प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  114. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  115. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।

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